સોમવાર, 23 જાન્યુઆરી, 2012
तसल्ली
हर कस्ती खुद देखता रहा,
अपना दर्द खुद सहेता रहा,
करके गये थे आनेका वादा,
यही बात सबसे कहेता रहा,
शाम ढल गयी कब आओगे,
समंदर बीन कहे बहेता रहा,
किनारो पे बैठ करु इंन्तजार,
सुरजसे तेरी खबर लेता रहा,
सुरज भी देख अब बदल गया,
कहा न कुछ छुपता रहेता रहा,
बेवफा नही हो यह हकिकत है,
यही दिलको तसल्ली देता रहा ।
नीशीत जोशी
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