कैसे कैसे वो गम होते है,
कुछ गम तो कम होते है,
रोशन दिखे पुनमका चांद,
अमावस्यामें नम होते है,
आंखोसे पीनेवाले वल्लाह,
वो मनसूबो में दम होते है,
खामोशी फरमाती है बाते,
तबतो लब्ज नरम होते है,
पापपुर्णके फेरे में है ईन्सान,
कुछतो अपने करम होते है ।
नीशीत जोशी 04.01.12
શુક્રવાર, 6 જાન્યુઆરી, 2012
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