શનિવાર, 11 ફેબ્રુઆરી, 2012

नादानी कि हद


ख्वाब भी नही आते रातोको सो कर,
गुजार देते है यूंही विरान रात रो कर,

अपना कहा फिरभी परायो की तरहा,
मूंह घुमा रखा है उसने रुसवा हो कर,

दिल के हर कूचे में बसा लिया है उसे,
कब तलक फिरते रहेंगे तस्वीर ढो कर,

हमने तो बीछाये थे फूल उनकी राह पर,
चल दिये वोह मेरे रास्तोमें कांटे बो कर,

अरे!! उनकी नादानी कि हद तो देखलो,
वोह मेरे जैसा ही ढूंढते है मुजे ही खो कर ।

नीशीत जोशी 09.02.12

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