રવિવાર, 26 ફેબ્રુઆરી, 2012


कहा अब नही आते, न आने से दिलको बुरा लगता है,
भले हो मशहुर गलीया,ये दिलका कुचा सुना लगता है,

जैसे भी दुरीया गर रखनी है तुजे, रखो मेरे हमनवाज,
मेरी हरएक सांसमे सिर्फ तेरा ही नाम गुंजता लगता है,

महसुस हमने भी किया है, ईन्तजार मे हर रातका रोना,
करवट बदलते रहते है बिस्तर भी कंटक सा लगता है,

अचानक उठ जाते है रात मे, सताता है अंधेरो का डर,
चीराग कि रोशनी में खुदका साया भी डरावना लगता है,

और तुम कहते हो, " हम नही आयेंगे,जाओ ", लेकिन,
जाए तो कहां?हर तरफ हर चहेरा हमे तुज जैसा लगता है ।

नीशीत जोशी

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