શનિવાર, 18 ફેબ્રુઆરી, 2012

बसे अन्जान शहरमें


अपनोको छोड बसे अन्जान शहरमें,
दोस्ताना तोड बसे अन्जान शहरमें,

खास बात भी नही कर पाए लोगोसे,
सपनोको जोड बसे अन्जान शहरमें,

अपनोकी कमी तो होती थी महेसूस,
बनाये कैसे मोड बसे अन्जान शहरमें,

हुन्नर जो था कहीं भी दिखा सकते थे,
न रास आयी दौड बसे अन्जान शहरमें,

दिल-ओ-जानसे चाहनेवाले वहां भी थे,
आये आयना तोड बसे अन्जान शहरमें ।

नीशीत जोशी

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો