
अभी अभी वोह चैन की नींद सोया है,
इसके पहले तो वोह बेहिसाब रोया है,
हसरत ,एक खिलौने कि, मांग लिया,
जो खुदके हाथो से ही कही पे खोया है,
खिलौने कि भीडमें चाहिये था बस एक,
उसने दिन रात सीनेसे लगाकर ढोया है,
खोया वो पाने कि फितरत रहे है सबकी,
माने मोती जीसे खुदने धागोमें पिरोया है,
आवाज ना करना वोह कहीं जाग जायेगा,
मुश्कील से नींदने उसे बांहोमें सजोया है ।
नीशीत जोशी
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