तेरी नजर का ही कसूर था,
जीसे पाके मै तो मगरूर था,
घायल फिरते रहे गलीओमें,
जीस शहरमें मै मशहूर था,
ऐसी नजरोने कयामत ढायी,
पर प्यार वास्ते मजबूर था,
ना देखे तो सब बेजान लगे,
दिल का वही चश्मे-नूर था,
नजरे उठती लगता पैमाना,
उसे पीना प्यारका गुरुर था,
मदहोश हो गये नीगाहो से,
वो नशा उतरना तो दूर था ।
नीशीत जोशी
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