બુધવાર, 22 ફેબ્રુઆરી, 2012
मकतूल थे हम
मकतूल थे हम, मकतल मेरा दिल बनाया,
कब्र पहोचाके उसने आंखो को झिल बनाया,
वाह रे उनकी महोब्बत ? उसको क्या कहेना,
जीने नही दिया,मरने को भी मुश्किल बनाया,
आलि माने थे पर दिये उसने आबेचश्म मुजे,
सीतम सहकर भी उसे हमने बिस्मिल बनाया,
चश्मेजाम पी के मखमूर बन अदम हो गये थे,
आशुफ्तः हो कर भी हमने उसे साहिल बनाया,
महोब्बत कि राह के वोह काहिल क्यों रह गये?
इनाम दे कर मुजे महोब्बत का जाहिल बनाया ।
नीशीत जोशी
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