બુધવાર, 29 ફેબ્રુઆરી, 2012

मुस्कान


हम तेरी मुस्कान के मुन्तजीर रह गये,
पर लोग रश्क से अल्फाजो को कह गये,

मोहब्बत के समंन्दर में डुब जाते मगर,
एक वायदे पर उस तूफान में भी बह गये,

सीख रखा था हमने चोट खाने का हुन्नर,
वोह देते गये हम हर घाव बखुबी सह गये,

तीरछी नजरो से देखते हुए बीना कुछ बोले,
मुश्कुराते रहे, हम वोही मुस्कान पे दह गये,

बेतासिर बना दिया था उस मुस्कान ने हमे,
आखिर हर गझल में उन्ही का नाम कह गये ।

नीशीत जोशी 27.02.12
मुन्तजीर= one who is awaited, रश्क = jealousy, बेतासिर= useless

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો