રવિવાર, 12 ઑગસ્ટ, 2012
बना जा रहा हु मैं
ना चला अपनी नयनो के तीर दीवाना बना जा रहा हु मैं,
ना जलाओ ऐसे चराग-ए-दिल परवाना बना जा रहा हु मैं,
कैसे संभाला जाए खुद के दिल को ऐसी अदाकारी से यंहा,
ना बरसाओ कातिल मुश्कान अफसाना बना जा रहा हु मैं,
तेरी हिना की रंगत देख कर रश्क होता है खुद पर अब तो,
दिल ही दिल में लगी महेंदी का फ़साना बना जा रहा हु मैं,
क़यामत ढाती है तेरे ये गुलाबी ओठो की नजाकत मुज पर,
कमसिन ओठ की लाली बनने का बहाना बना जा रहा हु मैं,
कितनी कसीस है इस चहरे में जैसे जन्नत की कोई हूर हो,
खुदा की रहमत देखे आज अकेले ज़माना बना जा रहा हु मैं !
नीशीत जोशी 04.08.12
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