રવિવાર, 19 ઑગસ્ટ, 2012

गझल तेरे नाम की

मेरे दिल में तेरी ही तस्वीर छायी है, जहां भी देखू बस तेरी ही परछायी है, इश्कको गूनाह कहने बाझ नही आते, दलदल है ये बात भी हमे समजायी है, तेरे हसीं चहरे ने किया है बेबस मुझे, न जाने ये रुह कैसे रुह से टकरायी है, ऐसे तो अल्फाज उतर आते है बाबस्ता, मत्ला कमजोर और गझल शरमायी है, युं कही नही जाती गझल तेरे नाम की, तस्सवूर में तूम आये तभी फरमायी है ! नीशीत जोशी 13.08.12

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