રવિવાર, 26 ઑગસ્ટ, 2012
इस दौर में
इस दौर में जो देखना नहीं है वही दिखता है,
महेंगायी में वोह बेचारा गरीब ही पिसता है,
इन्सान जी रहा है आतंक के डर से जहां में,
और आतंकवाद आसमाँ चढ़ कर चीखता है,
कमान संभाली हुयी है हमारे चुने नेताओं ने,
सेवाभाव भूल के वो खुर्शी के लिए बिकता है,
न जाने किसको दोष दे ये जालिम जमाने में,
बच्चा भी जन्म के साथ भ्रष्टाचार सिखाता है,
लोग तो दौड़े जा रहे है आगे बढ़ने की हौड में,
भाई खुद के भाई को पछाड़ने टांग खिचता है,
सिकंदर बने फिरते है देशद्रोही भी अपने यहाँ,
शरण भी उन्हें अपनी सरकार से ही मिलता है,
न ठहर पायेगा खुदा भी आज इस धरती पर,
पल पल बरदास्त कर इंसानी जीवन निभता है !
नीशीत जोशी 23.08.12
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