
वोह आते थे रोज़ पर आज न आये,
आने के उनके कोई आगाज़ न आये,
रोशनी जला के सजाली वो महेफिल,
दिल-इ-चरागको बूजाने बाज़ न आये,
कहके गए थे वोह क़यामतको मिलेंगे,
ये बातके मायीने कोई अंदाज न आये,
बांटनी चाहि हमने रोज़ उनसे खुशिया,
मगर प्यारकी तर्रनुमके साज न आये,
ख्वाईश थी कुछ देर के साथ की हमें,
जोलीमें तो अंधे ख्वाबोके राज़ न आये,
मत कर इतनी ज्यादा रुसवाई मुजसे,
कहेगे रुक्सत पे सब आये वोह न आये !
नीशीत जोशी 29.07.12
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