રવિવાર, 12 ઑગસ્ટ, 2012

वोह न आये

वोह आते थे रोज़ पर आज न आये, आने के उनके कोई आगाज़ न आये, रोशनी जला के सजाली वो महेफिल, दिल-इ-चरागको बूजाने बाज़ न आये, कहके गए थे वोह क़यामतको मिलेंगे, ये बातके मायीने कोई अंदाज न आये, बांटनी चाहि हमने रोज़ उनसे खुशिया, मगर प्यारकी तर्रनुमके साज न आये, ख्वाईश थी कुछ देर के साथ की हमें, जोलीमें तो अंधे ख्वाबोके राज़ न आये, मत कर इतनी ज्यादा रुसवाई मुजसे, कहेगे रुक्सत पे सब आये वोह न आये ! नीशीत जोशी 29.07.12

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