શનિવાર, 14 ડિસેમ્બર, 2013
पत्ते रो देते है
शजर जब सुख जाए,तो पत्ते रो देते है,
बदला मौसम,पर दोष हवा को देते है,
झरना प्यासा है दरिया से मिलने को,
मिलकर खुद अपना वजूद खो देते है,
अर्श और फर्श का,होता नहीं मिलना,
उफ़क़ पे,एक दूसरे का साथ तो देते है,
नाम नही बदनाम हो गया प्यार यहाँ,
वो नादाँ लोग तोहमत उम्र को देते है,
समजता नहीं कोई,रवायत कुदरत की,
मान ही लेना पड़ता है,खुदा जो देते है !!!!
नीशीत जोशी 08.12.13
આના પર સબ્સ્ક્રાઇબ કરો:
પોસ્ટ ટિપ્પણીઓ (Atom)
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો