શનિવાર, 29 ઑગસ્ટ, 2015
अपनी जिंदगी निसार दी
रवायत निभाते निभाते, मैने जिन्दगी गुजार दी,
हमारी रुखसत पे, तूने अपनी तस्वीर उतार दी,
कब कहा था हमने, के याद आती नहीं तुम्हारी,
न जाने फिर क्यों तूने, हमारी कहानी बिसार दी,
उतार नही सकते थे, फलक के चाँद सितारो को,
हमने चिराग जला के, अपनी झोंपडी सवार दी,
पता न था, उस अंजाम-ए-मुहब्बत का हमे कभी,
करके वफ़ा का जिक्र, तूने जिंदगी को ग़ुबार दी,
हमने रुखसार को तेरे,एहमियत न दी थी कभी,
दिलसे की मुहब्बत और अपनी जिंदगी निसार दी !!
नीशीत जोशी
(ग़ुबार=cloud of dust, निसार= sacrifice) 25.08..15
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