શનિવાર, 8 ઑગસ્ટ, 2015
जान ले लेगी किसी दिन ये शरारत आपकी
जान ले लेगी किसी दिन ये शरारत आपकी ,
मयकदे पहुंचा न दे हमको ये आदत आपकी |
हाथ में पत्थर तुम्हारे , कांच का मेरा बदन ,
अब करूँ भी तो करूँ किससे शिकायत आपकी |
नाज़ुकी जो आपके हिस्से में आई क़ुदरतन,
मेरी जाँ लेकर रहेगी ये नज़ाकत आपकी |
हम सलामत हैं तो बस फ़ज़लो-करम से आपके ,
काम आती है हमारे बस इबादत आपकी |
बोझ ग़ैरों का उठा लेते हो अपने आप पर ,
याद रक्खेगा ज़माना ये शराफ़त आपकी |
नीशीत जोशी 03.08.15
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