શનિવાર, 22 ઑગસ્ટ, 2015
किधर है ?
दिल में है प्यार बेहिसाब, मगर उसमें महक किधर है ?
दिखता है क़व्स-ए-क़ूज़ा फलक में, पर उफ़क़ किधर है ?
तड़पाना, तड़पना, रोना, मनाना महज सिर्फ दिखावा है,
मुहब्बत की कोई तपिश, प्यार की वह कसक किधर है ?
मिल जाते थे अक्सर बुलाने पे, दौड़ के आ भी जाते थे,
सिद्दत से बैठे है इंतज़ार में, पर आज वह ज़लक किधर है ?
मिल जाते है अर्श-ओ-फर्श, कहीं उस पार उफ़क़ के मगर,
उसे खोजने की अगन, और ऐसी आग की दहक किधर है ?
न जानते हुए भी, मुसाफिर कहते मिलेंगे के सब जानते है,
टिके है झूठ पे, मगर झूठ बोल के मिलता सबक किधर है ?
नीशीत जोशी
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