શનિવાર, 22 ઑગસ્ટ, 2015

किधर है ?

1795580_10152888343172190_7737998867055417653_n दिल में है प्यार बेहिसाब, मगर उसमें महक किधर है ? दिखता है क़व्स-ए-क़ूज़ा फलक में, पर उफ़क़ किधर है ? तड़पाना, तड़पना, रोना, मनाना महज सिर्फ दिखावा है, मुहब्बत की कोई तपिश, प्यार की वह कसक किधर है ? मिल जाते थे अक्सर बुलाने पे, दौड़ के आ भी जाते थे, सिद्दत से बैठे है इंतज़ार में, पर आज वह ज़लक किधर है ? मिल जाते है अर्श-ओ-फर्श, कहीं उस पार उफ़क़ के मगर, उसे खोजने की अगन, और ऐसी आग की दहक किधर है ? न जानते हुए भी, मुसाफिर कहते मिलेंगे के सब जानते है, टिके है झूठ पे, मगर झूठ बोल के मिलता सबक किधर है ? नीशीत जोशी

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