રવિવાર, 6 ફેબ્રુઆરી, 2011

समज समज कर ना समजे


समज समज कर ना समजे वो दिवाना है,
जल जल कर भी ना जले वोही परवाना है,

हर पल बैचेन रहे दिदार के लिये उसके,
हर सयमें उनका दिदार करे वो मस्ताना है,

सीतम करना फितरत है मेरे जनाब की,
सीतम सह कर भी हमे तो वो मुश्कुराना है,

पागल किया है हर अदा से मेरे हमराजने,
कायल है उन्ही अदाओ से उन्हे वो बताना है,

सुनके विणाके मधुर सुरो से तृप्त होते कान,
कोयलकी कुह मे भी वही सुनले वो सयाना है,

मचल उठता है दिल मिलन की आश लिये,
उनकी यादोमे बसर किये हर पल वो सुहाना है,

यह वादिया बागो के नजारे है उन्हीके साये,
रुह नीकले तो चरणोमे उनके प्यार वो जताना है।

नीशीत जोशी

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