રવિવાર, 27 ફેબ્રુઆરી, 2011

तो क्या करु?


अब वो चांद तारे को क्या करु?
वो सुरजकी किरणोको क्या करु?

न रखी है और कोइ ख्वाईश,
न करू याद तो अब क्या करु?

मील जाती हो हर धडकनमे,
दिखे ना किसीको तो क्या करु?

याद आयी सवाल बनकर अब,
प्रश्न ही बने जवाब तो क्या करु?

लीपट जाते हो बन के आंचल,
हर आंसु बने गुलाब तो क्या करु?

होठोसे बजा लेते हो मधुर ध्वनी,
सुनके पांव थीरक उठे तो क्या करु?

दिनरात नाम रटण छोड कुछ नही,
स्वप्नमे न छुटे नाम तो क्या करु?

नीशीत जोशी

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