ગુરુવાર, 26 મે, 2011

चलते चलते


राह चलते चलते उनसे मुलाकात हो गयी,
उफान उठा दिलमें जाने कयामत हो गयी,

रुह रुहसे मीलने लगे अपना जो कहा था,
वो लब्ज रहे खामोश और इबादत हो गयी,

आंखोने बया कर दिया वाकिया हालेदिल,
दिले-आंगन उन आंखोकी इनायत हो गयी,

यादे-जुनुन बहक गया दर्द का सामना होते,
लगे झख्म उभर पडे और शिकायत हो गयी,

दिवाने तो थे इस लम्हे ने दिवानगी बढा दी,
वो मुफलीशी आज महोब्बती शराफत हो गयी,

आयना तोडा करते थे राहदार बन कर कभी,
फिर भी उनकी तस्वीर आज कायनात हो गयी ।

नीशीत जोशी 24.05.11

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