पीता नही फिरभी शराबी कहलाता हूं मै,
आप पी के है, साथ मै भी लहेराता हूं मै,
ना कलम,ना दवात,ना कोई रंग है पास,
अपनेही खुनसे तेरी तस्वीर बनाता हूं मै,
तहजीब सीखायी जो राहदार बनके कभी,
महफिलमें अजनबीसा खुदको ढुंढता हूं मै,
सिफतसे छॉड के चले जाने का वाकिया तेरा,
उसी चौराहे पे खडा तेरा रास्ता देखता हूं मै,
तेरी रुह से नाता जोड लिया था उसी दिन,
रुह खोजने सुबहो-शाम आयना तोडता हूं मै,
दिनरात की भागादौडसे बोझील बना 'नीशीत',
अबतो जीनेके लिये गमको उठा फिरता हूं मै ।
नीशीत जोशी 06.05.11
શનિવાર, 14 મે, 2011
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