
खुदको खुदा समजने से क्या होता है,
वही तो होता है जो मंजुरे रब होता है,
तु उसके सामने तो एक कण भी नही,
वो पहाड भी उसके आगे कण होता है,
जीते हो तो उसीकी ही मरजी से जहांमे,
उसीकी मरजीसे आनेवाला सांस होता है,
मत कर इतना गुमान खुद पर ओ नादान,
हर एक ईन्सानका दिन मुक्करर होता है,
कर ले उसे याद नाम रटण कर उसका ही,
एक नाम से ही जीवन सबका पार होता है ।
नीशीत जोशी 16.05.11
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