
उन्हे रातो को नींद आती नही है,
पलके मीठे सपने सजाती नही है,
यादो का मंझर कम ही नही होता,
पूरानी यादे जहन से जाती नही है,
तस्सवूर में रह जागना अच्छा नही,
कोइ लाश वापस सांस पाती नही है,
अंधेरे के डर से न कुछ हासिल होगा,
वो चराग कि लौ घर जलाती नही है,
इतिहास के पन्नो से बाहर नीकलो,
अश्को को पलके अब उठाती नही है,
दूआ है चैन कि नींद आ जाये आज,
अपनो की दूआ फिजूल जाती नही है ।
नीशीत जोशी