શનિવાર, 15 ઑગસ્ટ, 2009
जख्म खुरेच कर लहू नीकालते है
वही जख्म ताउम्र नासूर बनते है
कांटो के जख्म तो फिरभी भरते है
फुलोने दिये जख्म नासूर बनते है
धोका है बहार आनेका इन्तजार करते है
मौसमके धोके के जख्म नासूर बनते है
चौदवी का चांद कहने से क्या होता है
पुर्नीमाके चांदके जख्म नासूर बनते है
लहू से खत लीखने से न कोइ फायदा है
न पाये जवाबके जख्म नासूर बनते है
नीशीत जोशी
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