શનિવાર, 3 માર્ચ, 2012
वोह कहते है
वोह कहते है हमने कुछ बताया ही नही,
मोहब्बत के जज्बात को जताय ही नही,
रुठ गये थे वो एक लिखा इजहार पढकर,
मान गये थे पर कहते है मनाया ही नही,
घर नीचे खडे रहते थे उनके दिदार वास्ते,
जानते हुए भी वो कहते है सताया ही नही,
जब तलक रहे तेरे शहर कि उन गलियोमें,
हमने किसी ओर को अपना बनाया ही नही,
वो दिन से आज तलक ख्वाबो में जागते रहे,
पर कहते है हमने सपनो को सजाया ही नही,
इस जनम में न सही, अगले जनम ही सही,
खुदासे कहना दूसरेको दिल में बसाया ही नही ।
नीशीत जोशी
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