શનિવાર, 24 માર્ચ, 2012
सीख लिया
समुंन्दर को देखके डरना सीख लिया,
लहेरो को हाथो में भरना सीख लिया,
ना मीली थी तामील हमको उडान की,
होसलो से ही हमने उडना सीख लिया,
कमजोर था ये दिल खेल में थक गया,
उसे भी अब तन्हा रखना सीख लिया,
लाये बिसात बीछा दी उसने एक बाझी,
उनकी चालो पे चाल चलना सीख लिया,
जमी पर थे ख्वाईश रख ली आसमां की,
उस मुराद को बरबाद करना सीख लिया,
जज्बात जता के घावो को नासूर बनाया,
खयालोमें खो कर दर्द सहना सीख लिया,
अब तुम कभी न आना मेरी कब्र पे 'नीर',
आंसू बहानेसे बहेतर तो मरना सीख लिया ।
नीशीत जोशी 'नीर' 18.03.12
આના પર સબ્સ્ક્રાઇબ કરો:
પોસ્ટ ટિપ્પણીઓ (Atom)
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો