
जीन्दगी जीये कैसे किसीने बताया नही,
बेबसी का आलम किसीको जताया नही,
जो मिले जहे-नसीब मान कर ठहर गये,
प्यार मांग मांग के किसीको सताया नही,
जीन्दा रखी है सांस हमने उनके लिये ही,
हमने अभी अपनी कब्रको भी सजाया नही,
आब और आग का मिलन अधुरा रह गया,
आब ने आग को दिल से दुर हटाया नही,
नसीब खुशनसीब होते है नही जानते हम,
हमने तो मोहब्बत का खजाना कमाया नही,
बदनाम ना हो जाये जहां में प्यार हमारा,
इसीलिये 'नीर' आंखो ने अश्क बहाया नही ।
नीशीत जोशी 'नीर'
आब = पानी
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