રવિવાર, 11 માર્ચ, 2012

मेरी सांस चलती है


तेरी सांस चले तो ही मेरी सांस चलती है,
जब मचलती दिखे तो मेरी सांज ढलती है,

अपनी सांसो कि गरमी से फिझा गरमाना,
वादियों में तेरी ही खुश्बु महक सकती है,

मजा तो तब है जब एक हो जाये वो सांसे,
पता ही न चले कि किसकी सांस जलती है,

सांस ही क्या जीस में किसीका न नाम हो,
गर सांस से सांस न जुडा पाए मेरी गलती है,

रफ्ता रफ्ता सांसे कम होने लगी है यूं तो,
अकेले में मुजे तेरे बगैर कि सांसे खलती है,

करिश्मा तुम देख लो मेरे हमनवाज,यह भी,
तेरी सांसोसे छुए पथ्थरसे मेरी कब्र बनती है ।

नीशीत जोशी 'नीर'

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