રવિવાર, 5 મે, 2013

तेरे बगैर

74624_427169104018984_692942188_n आ गये हम कहाँ तेरे बगैर, कैसे खोलेगे झुबाँ तेरे बगैर, फैसला लेना भी हुआ मुहाल, कमझोर पड़ा वहां तेरे बगैर, मौसमे बहार के इंतज़ार में, ना गयी कभी खजां तेरे बगैर, काटो की खलिश से फूल न चुने, बाग़ न हुआ आसाँ तेरे बगैर, जाबित बन खुद ज़ाबिता तोड़े, नहीं है सलामत जहाँ तेरे बगैर !!!!! नीशीत जोशी 23.01.13

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