રવિવાર, 5 મે, 2013

तोड़ दी तुने प्यार की कसमे

003 तोड़ दी तुने प्यार की कसमे, पहेंन के जोड़ा शादी का, क्यों रोती हो अब तुम सुन कर, जिक्र मेरी बर्बादी का, नादाँ समझ कर खेलती रही, वो मुहब्बत का खेल तू, उलझते गये हम भरम में, शायद हो फ़न बुनियादी का, बे-शुमार देती रही घाव दिल पर, बन चुके जो नासूर, बन बैठा है दिल भी अब, उसे बर्दाश्त करने के आदी का, लगा दी पाबंधी तूने,ज्यादा दिले बेक़रारी दिखाने की, लूट लिया सब कुछ, और न रहा कोई पल आबादी का, दिल तो आखिर दिल है,न समझे किसी को कनीझ, दुपट्टा ओढ़ाना, कफ़न के नाम, मेरी उस शहजादी का !!!! नीशीत जोशी 26.01.13

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