રવિવાર, 13 મે, 2012

मुजे कोई रहमत का ईशारा मील गया होता, बीन पतवार नाव को किनारा मील गया होता, ना थी कोई मन्जील, ना पहेचान आसमां की, मील जाता रास्ता गर सहारा मील गया होता, उचाई पे उडते रहते परिन्दो को ले करके साथ, जन्नत की परीओ का नजारा मील गया होता, चांद भी अगर मसरुफ होता चांदनी के साथमें, हमे कोई ना कोई तो सीतारा मील गया होता, दुश्मनो में रह कर दोस्ती दिखाते हम सबको, उन्ही में से साझ-गार हमारा मील गया होता । नीशीत जोशी 12.05.12

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