રવિવાર, 20 મે, 2012
अभी अभी हम नहाये हुए है
ना अब नीकलेंगे आंसु, अभी हम आंखो में खोये हुए है,
ना जगा पाओगे अब तुम, अभी हम कब्र में सोये हुए है,
पास बैठने की इल्तजा जो करते, जो हमसे मूह फेर लेते,
आज वही सब पास आ के बहोत ही नजदीक आये हुए है,
हर बात पे मुझ पे हसके, जो रुलाते थे मुझे हरदम यहां,
आज वही सब हसने को छोड के, मुज पर ही रोये हुए है,
ना दिया था कभी जरुरत पे कंधा, ठुकराया था मेरा हाथ,
आज वही सब आ आके मेरे जनाजे को कंधा दिये हुए है,
अब ना छेड पाओगे मुझे तुम जमाने भर के सताये हुए है,
ना डालो बदन पर यूं मीट्टी अभी अभी हम नहाये हुए है ।
नीशीत जोशी
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