ગુરુવાર, 31 મે, 2012
ये सूरज भी
वो रुसवाई का दर्द अब खलता है,
अश्क आंखो में भी अब जलता है,
कितने वफा-जफा के तूफां के बाद,
अपना कोई बहोत खास बनता है,
भेजा फरमान यादो में न आने का,
जज्बात कहां ऐसे काबू में रहता है,
मोहब्बत के आसार होते है ऐसे भी,
आशिक शोलो पे प्यार से चलता है,
चांद को चांदनी से मीलाने के वास्ते,
ये सूरज भी रोज शाम को ढलता है ।
नीशीत जोशी 27.05.12
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