રવિવાર, 27 મે, 2012

चलो नयी जीन्दगी का आघाझ करते है, पुरानी बिती हुयी को हम बाझ करते है, चीलमन महकाके बनायें नया आशीयाना, लो इसबार कोइ नया ही अंदाज करते है, वादा करके भी जरुरत ना की कभी पुरी, हर बात को तो वो नजर-अंदाज करते है, मुद्दतो से साथ नीभाते रहे है उसका हम, हम उसकी पुरी हर इह्तियाज करते है, सीतम ढानेकी आदत पाल रखी है उसने, चलो आज सीतमगर का इलाज करते है, चलो ना,जलाते है उसके दिल में सिराज, अंधेरोके डर से उजालो पे मिजाज करते है, क्या कहें उसे जो औरत को समजे खीलौना? उपरवाला भी कैसे पुरुष को सर्ताज करते है !!! नीशीत जोशी 21.05.12 आघाझ=beginning,इह्तियाज=need,सिराज=lamp, candle 21.05.12

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો