ગુરુવાર, 31 મે, 2012
ए हवा,जरा गौर से देख ले
ए हवा, तु आहिस्ता चल, दुप्पटा सरक रहा है,
शर्मोशार यह चहेरा देख ले कैसा चमक रहा है,
तु पत्तो को उडा जाती, खुश्बु को भी फैला जाती,
तेरे आगमन से ये पूरा बाग कैसा महक रहा है,
तु छू के नीकल गयी गुलाबी गालो को शान से,
उन गालो से देख ले कैसा गुलाल टपक रहा है,
उन गेसूओ को जब लहेराया तूने भरी दूपहेरको,
मीला छावा, ये चहरे पर कैसा नूर जलक रहा है,
ए हवा, चूम के नीकल चली उन हॉठो को नजाकत से,
जरा गौर से देख ले रोम रोम कैसा बहक रहा है ।
नीशीत जोशी 31.05.12
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