રવિવાર, 23 ડિસેમ્બર, 2012
मेरी फुरकत में
मेरी फुरकत में, जब तड़पा करोगे,
अकले बैठकर, तब रोया करोगे ।
आह निकलेगी, मेरी याद आने पे,
नामावर के आने से तौबा करोगे ।
ख़ुशनुमा रात लौट के ना आयेगी,
इन्तेज़ार में रात, बिताया करोगे ।
राह चलते भी, पिंदार मेरे ही होंगे,
दीदार को मेरे, बेहद तरसा करोगे ।
बे- ख़ुदी में ख़ुद, गुनाहग़ार समझोगे ,
मेरे जनाजे का, ख्व़ाब देखा करोगे ।
नीशीत जोशी (फुरकत = separation, नामावर = postman, पिंदार = thought ) 17.12.12
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