રવિવાર, 16 ડિસેમ્બર, 2012
उतर आये है बादल
उतर आये है बादल, आँखों में आब बनकर ,
बे-लगाम उमडेंगे - बरसेंगे वो, सैलाब बनकर ।
उभर के आती है, तसव्वुर में तस्वीर उसकी ,
सितम ढाह जाते हैं वो जज़्बात,ख्व़ाब बनकर ।
दिल को खरोंच खरोंचकर, पूछते थे जो सवाल ,
रूबरू आज खड़े है सब सवाल , जवाब बनकर ।
समंदर को मानो, किसी साहिल की तलाश है ,
लहर की शक्ल आये हैं अश्क़ , हिसाब बनकर ।
ग़र्दिश सिखा रही है, आसमानों के सितारों को ,
ज़मीं पे उतरे हैं अश्क़, दर्द के अज़ाब बनकर ।
- नीशीत जोशी 09.12.12
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