वोह एक चिड़िया है
रोज खिड़की पे झांकती है
पर
कहाँ से लाऊ
कोई दाना
जो
वोह खा सके
ना भी गर दूँ
उड़ के
चली जायेगी
ना कुछ बोलेगी
ना इतरायेगी
शायद
यह भी
अपनी
जिन्दगी जैसी है ...
नीशीत जोशी 15.12.12
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