
प्यार के वास्ते, उनके करीब आते रहे है,
गम-ए-जिन्दगी का असर, बताते रहे है,
ना कर बद-गुमानी, अपनी नजाकत की,
हम तो उन फूलो से भी, चोट खाते रहे है,
फरिस्ते भी माँगते है, दुआ उनके नबी से,
जमीं पर उतारने, चाँद को मनाते रहे है,
फितरत को बदल लो अपनी, सितमगर,
सितम भी, अब दर्द की ग़ज़ल गाते रहे है,
नहीं रखी है, कोई हसरत अब जिन्दगी में,
उनकी ख्वाइश को, अपनी बनाते रहे है !!!!
नीशीत जोशी 20.12.12
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