
जहाँ में यह रूह, मुहब्बत तो करती है,
मगर, चाहनेवालो के पीछे भटकती है,
लगा कर दिल,एक रोग किया हासिल,
फिर मुश्कुराने को, दिनरात तरसती है,
वो कतरा भी लगता है समंदर के जैसा,
आंसुओ को सैलाब कहकर मचलती है,
हर एक परछाई, अपने मासूक की लगे,
हर कोई आहट पर, यह रूह तड़पती है,
नहीं करते तबीब, नाईलाज दर्द की दवा,
दर्द- ए-दिल में दुआ ही साथ चलती है !
नीशीत जोशी 14.12.12
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