
तस्वीर बनाता हूँ पर नहीं बनती,
ये सांस भी तेरे बगैर नहीं चलती,
तबस्सुम को देख तसल्ली करली,
सजाने हे ख्वाब, शाम नहीं ढलती,
दूरी को मिटा दिया हमने ब-खूबी,
करीब आकर भी बात नहीं करती,
खामोशी से सह गये दर्द-ए-झख्म,
जलाया बदन पूरा,रूह नहीं जलती,
माना मुहब्बत वास्ते इन्कार नहीं,
मुस्कुराती है पर हाँ भी नहीं भरती ||
नीशीत जोशी 08.09.13
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