શનિવાર, 7 સપ્ટેમ્બર, 2013

कब तलक

382619_332664866860533_811827170_n रात के अंधेरो का आलम रहेगा कब तलक, तूफ़ान के साथ वो समंदर बहेगा कब तलक, आएगा सुकून भी एक मुअय्यन दिन यहाँ, मिस्कीन ये नादाँ दिल जलेगा कब तलक, चर्चा तो होती ही रहेगी उस शहर में आम, खाये झख्म के दर्द को कहेगा कब तलक, हर मोड़ पे मिलेगे रकीब अपनो के भेष में, भूल-भुलय्या की राह से बचेगा कब तलक, मुसीबत तो आनी जानी है ये जिंदगानी में, वो नक्काद के चक्कर में पड़ेगा कब तलक | नीशीत जोशी ( मुअय्यन=fixed, मिस्कीन=poor-needy, नक्काद=critic ) 04.09.13

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