શનિવાર, 21 સપ્ટેમ્બર, 2013
मुसव्विर बन के, अहबाब की शक्ल दी तूने
चाहत को मेरी,नफ़रत में बदल दी तूने,
जीत गये थे बाजी,हार में पलट दी तूने,
चूम लेते जो तुम, खिल उठते वो फूल,
लेकर कली को हाथो में, मसल दी तूने,
ले जाता फलक में,चाँद की मुलाक़ात पे,
परिन्दा जान के, कफ़स की सफ़र दी तूने,
आयना समजकर तोड़ डाला दिल को,
चराग की तरह रूह को, जलन दी तूने,
मुनासिब होता, गर भूल जाता प्यार को,
मुसव्विर बन के, अहबाब की शक्ल दी तूने ||
नीशीत जोशी 18.09.13
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