શનિવાર, 21 સપ્ટેમ્બર, 2013
कहाँ गयी वोह
कहाँ गयी वोह जो मेरे लिए उदास रहती थी,
हर लम्हा मेरी यादो में खुद आहें भरती थी,
लाचार थी निगाहें,दिल भी मजबूर था शायद,
लौट के आउंगी बार बार यह वोह कहती थी,
भिगोया था कंधो को अपना सर रखकर वहीँ,
सिमट के बाहों में, अश्क में वोह जलती थी,
तन्हाई को मानो जैसे तकदीर समज लिया,
खामोश रहके जो राझ-ओ-नियझ करती थी,
ऐ रब, अब तू ही बता दे मेरे महबूब का पता,
वोह दिल-ए-अझीझ जो जमाने से डरती थी ||
नीशीत जोशी
(राझ-ओ-नियझ= intimate conversation between the lover and beloved) 19.09.13
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