રવિવાર, 6 માર્ચ, 2016
आज अपने वस्ल की है रात आखरी
आज अपने वस्ल की है रात आखरी,
और हमारी यह है मुलाकात आखरी,
तेरी बज्म से ये दिवाने की बिदाई है,
वह शमा परवाना की है बात आखरी
भूल पाना मुमकिन नही तेरे इश्क़ को,
आँखे करेंगी बयाँ ये जज्बात आखरी,
मत पूछ मुझे मिले जख्मो का हिसाब,
देने होंगे जवाब हो सवालात आखरी,
और कोई आ न पाएगा सपनो में मेरे,
तेरे ही अक्स का खयालात आखरी !
नीशीत जोशी 09.02.16
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