રવિવાર, 6 માર્ચ, 2016

खाब बनके आ जाओ

कटती नही यह रात, अब खाब बनके आ जाओ, झुमती हुई महफिल की, शाम बनके आ जाओ, किसको कहें यह बात, अब जान पर जो आयी है, नजरों को अल्फाज़ दे कर, बात बनके आ जाओ, मुझको मुबारक हो, मेरी आँख का तूफानी दरिया, तुम आँखो से फिर बहता, आब बनके आ जाओ, शरमा नहीं, यह चाँद खुद छूप कर सो जायेगा, तुम बेकरार ख्वाब सजे, रात बनके आ जाओ, जलते हुए जुगनू, शहर रोशन करे भी तो क्या, तुम रोशनी करता, एक चिराग बनके आ जाओ ! नीशीत जोशी 13.02.16

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