રવિવાર, 6 માર્ચ, 2016
भूल तुझसे हुई मुझे समझने में
भूल तुझसे हुई मुझे समझने में,
बिना मापे गहरायी में उतरने में,
हर शक्श की तासीर है मुख्तलिफ़ मगर,
इक पल नहीं लगता उसे बहकने में,
झख्म नही दिखते दिल पर लगे हुए,
नाही वक्त लगता है दर्द को पनपने में,
लो, बहारे आ गई सहरा में गुल खिले,
क्यों देर करे है गुलशन, तू महकने में,
एक दिलजले के हाथ, मशाल क्या आई,
वक्त ना लगा जरा, बस्तिया उजड़ने में !
नीशीत जोशी 10.01.16
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