રવિવાર, 6 માર્ચ, 2016

बाँध सब्र का आज टूटने वाला है

बाँध सब्र का आज टूटने वाला है, कोइ अपना मुझसे छूटने वाला है, शाम वस्ल की हसीं हो जाती मेरी चाँद खुद फलक को चूमने वाला है वो मुलाकातें और बहेतर हो जाती ख़ामोशी का आलम डूबने वाला है परिंदें भी कफ़स तोड के उड जायेंगे, पंख फैला अपने वो झूमने वाला है तुम पिलाते रहना आँखो से जाम ये रिंद यकीनन अं लूटने वाला है जिस शहर के लोग नफ्स परस्त हो प्यार का दरिया वहीं सूखने वाला है राह ए मुहबत पर "नीर" चले भी कैसे ? हिज्र ए गम का कांटा चूभने वाला है नीशीत जोशी 'नीर' 02.01.16

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો