શનિવાર, 23 મે, 2009

रुठे को जो मनाओ तो जानु
गीरे हुए को जो उठाओ तो जानु
प्यार मे जो गीरो तो जानु
और उसमे गीर के संभल जाओ तो जानु

नीशीत जोशी

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