શનિવાર, 1 સપ્ટેમ્બર, 2012
आना छोड़ दे
उन हसीं ख्वाबो को कह दो, आना छोड़ दे,
रातभर आ आ कर हमें यूँ, सताना छोड़ दे,
न कोई शाकी,न पैमाना,न चराग जलाएगा,
कोई उनसे कह दो महेफिल सजाना छोड़ दे,
बैठे है फूलो के बिच शहर-ए-खामोशा में जैसे,
कोई उनसे कहे दो ख्वाइश में, पाना छोड़ दे,
मुन्तजिर था तब, न आने के बहाने बना लिए,
अब आँखे बंध हुयी, जज्बात जताना छोड़ दे,
अब बहारो में भी पतजड़ का अहेसास होगा,
वीरान है अब वहां के रास्ते,वहां जाना छोड़ दे !
नीशीत जोशी 28.08.12
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